
रीवा में मूसलाधार बारिश के कारण अस्पताल नहीं पहुंच सकी एंबुलेंस, प्रसव पीड़ा से तड़पती महिला की रास्ते में मौत
रीवा की गर्भवती महिला की दर्दनाक मौत से उठा सवाल – क्या जिम्मेदार सिर्फ बारिश थी या पूरा सिस्टम?
रीवा (मध्य प्रदेश): रीवा जिले के जवा ब्लॉक स्थित बरहटा गांव में एक गर्भवती महिला की दर्दनाक मौत ने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है। मूसलाधार बारिश के कारण मह नदी उफान पर आ गई, और उसी के बीच फंसी प्रियंका रानी कोल समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाई। इलाज के अभाव में प्रसव पीड़ा के दौरान ही उसकी मौत हो गई।
दो घंटे तक उफनती नदी के किनारे फंसी रही गाड़ी, प्रियंका तड़पती रही
प्रियंका लगभग नौ महीने की गर्भवती थी। जब अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई, तो परिवार उसे पास के जवा अस्पताल ले जाने के लिए निकला। रास्ते में मह नदी को पार करना था, लेकिन भारी बारिश की वजह से नदी उफान पर थी और पुल के ऊपर से पानी बह रहा था। गाड़ी को रुकना पड़ा, और लगभग 2 घंटे तक प्रियंका उसी गाड़ी में दर्द से तड़पती रही।
गांव के एक झोलाछाप डॉक्टर को बुलाया गया, लेकिन जब तक वो पहुंचा, प्रियंका की सांसें थम चुकी थीं।
लाडली बिटिया योजना और स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत
प्रियंका के परिवार ने बताया कि उसे पहले ससुराल में डिलीवरी के लिए रखा गया था, लेकिन वहां की बदहाल सड़कें खतरे की वजह बन सकती थीं। इसलिए उसे मायके भेजा गया। दुर्भाग्यवश, मायके के रास्ते में भी पुल पर पानी का तेज बहाव था, जिससे वह अस्पताल नहीं पहुंच सकी।
सरकार का दावा है कि दूरदराज के इलाकों में आशा और स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैनात हैं, जो इमरजेंसी में मदद करते हैं। लेकिन प्रियंका के गांव में कोई स्वास्थ्य सेवा मौजूद नहीं थी।
लीला साहू की यादें फिर ताजा – “सड़क नहीं, तो जिंदगी नहीं”
इस घटना ने सीधी जिले की लीला साहू के वायरल वीडियो की याद दिला दी, जिसमें उसने खराब सड़कों की वजह से गर्भवती महिलाओं की जान पर संकट की चेतावनी दी थी। लीला ने वीडियो में कहा था:
“हम नौवें महीने में हैं, सड़क का हाल ऐसा है कि अगर रात को डिलीवरी का समय आया तो एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाएगी। जिम्मेदारी किसकी होगी?”
अब वही डर प्रियंका की मौत के रूप में सच साबित हो गया है।
सिस्टम की असफलता और सवालों की बौछार
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क्या सिर्फ बारिश जिम्मेदार है, या प्रशासन की पूर्व तैयारी की कमी?
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क्यों स्वास्थ्य सेवाएं गांव तक नहीं पहुंच पाई?
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सालों से ऐसे हादसे दोहराए जा रहे हैं, लेकिन नदी पर मजबूत पुल अब तक क्यों नहीं बना?
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सरकार के दावे और जमीनी हकीकत में इतना बड़ा फासला क्यों है?
विकास के दावों की सच्चाई – कागज़ी पुल मजबूत, असली पुल ध्वस्त
सरकार द्वारा ग्रामीण विकास के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर न पुल हैं, न सही सड़कें, और न आपातकालीन चिकित्सा सहायता।
जब तक सरकार हर गांव तक पक्की सड़कें, मजबूत पुल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं पहुंचाएगी, तब तक ‘लाडली बिटिया’ जैसे स्लोगन सिर्फ प्रचार तक सीमित रहेंगे और बेटियां इसी तरह तड़पकर दम तोड़ती रहेंगी।
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