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क्या यह संभव है कि मां के गर्भ में रहते हुए बच्चे का लिंग पता लगाया जा सके?
गर्भधारण एक चमत्कारी प्रक्रिया है और इस दौरान होने वाले शारीरिक व जैविक परिवर्तन विज्ञान के लिए भी अत्यंत रोचक विषय रहे हैं। जब किसी महिला को पता चलता है कि वह गर्भवती है, तो उसके मन में कई सवाल जन्म लेते हैं – उनमें से एक सबसे आम सवाल यह होता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की? यह स्वाभाविक जिज्ञासा है, खासकर जब परिवार या रिश्तेदार इस पर तरह-तरह की धारणाएं या अनुभव साझा करते हैं। लेकिन क्या वास्तव में यह संभव है कि हम बच्चे का लिंग मां के गर्भ में रहते हुए जान सकें? आइए इस विषय को विस्तार से समझते हैं – वैज्ञानिक, सामाजिक और कानूनी पहलुओं से।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिंग का निर्धारण
वैज्ञानिक रूप से देखें तो बच्चे का लिंग तभी निर्धारित हो जाता है जब शुक्राणु और अंडाणु का निषेचन होता है। पुरुष के शुक्राणु में X और Y दोनों प्रकार के गुणसूत्र (chromosomes) होते हैं, जबकि महिला के अंडाणु में केवल X गुणसूत्र होता है। यदि Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु से मिल जाता है तो गर्भ में लड़का विकसित होता है (XY), और यदि X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु से मिलता है तो लड़की (XX) होती है।
हालांकि लिंग का निर्धारण गर्भधारण के समय ही हो जाता है, लेकिन इसे जानने की तकनीक गर्भावस्था के कुछ सप्ताहों बाद ही संभव होती है। अल्ट्रासाउंड एक ऐसी सामान्य तकनीक है जिसके माध्यम से गर्भ में बच्चे का स्वास्थ्य, विकास और कुछ मामलों में लिंग की पहचान की जा सकती है। आमतौर पर 18 से 22 सप्ताह के बीच जब “अनॉमी स्कैन” किया जाता है, तब बच्चे की शारीरिक संरचना दिखाई देने लगती है और अनुभवी सोनोलॉजिस्ट लिंग की पहचान कर सकते हैं। इसके अलावा, कुछ उन्नत टेस्ट जैसे एनआईपीटी (Non-Invasive Prenatal Testing) और एमनिओसेंटीसिस (Amniocentesis) भी लिंग की पुष्टि कर सकते हैं, लेकिन ये टेस्ट आमतौर पर जेनेटिक समस्याएं पता लगाने के लिए किए जाते हैं, न कि लिंग पहचान के लिए।
भारत में लिंग परीक्षण पर कानूनी रोक
हालांकि तकनीकी रूप से यह संभव है कि गर्भ में शिशु का लिंग जाना जा सके, लेकिन भारत में यह कानूनन प्रतिबंधित है। भारत सरकार ने 1994 में PCPNDT Act (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act) लागू किया था, ताकि भ्रूण हत्या पर रोक लगाई जा सके। इस कानून के तहत कोई भी डॉक्टर या लैब यदि गर्भ में बच्चे का लिंग बताता है तो वह दंडनीय अपराध माना जाता है। इस कानून के अंतर्गत लिंग परीक्षण कराने वाले माता-पिता और जानकारी देने वाले चिकित्सक दोनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें जेल और जुर्माना दोनों शामिल हैं।
इस कानून की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि समाज में बेटियों के प्रति भेदभाव के चलते गर्भ में ही कन्याओं की हत्या की घटनाएं बढ़ने लगी थीं। लिंग जांच कराकर लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही खत्म कर देना एक सामाजिक बुराई बन गई थी। इसी कारण सरकार को यह सख्त कानून बनाना पड़ा ताकि लड़के-लड़कियों के अनुपात को संतुलित रखा जा सके।
सामाजिक और नैतिक पहलू
जहां एक ओर विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि गर्भ में पल रहे बच्चे का डीएनए और जीन भी पढ़ा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठता है कि क्या हमें वास्तव में बच्चे का लिंग पहले से जानना चाहिए? गर्भावस्था का उद्देश्य एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देना होना चाहिए, न कि यह तय करना कि वह लड़का होगा या लड़की। यह जिज्ञासा सामान्य हो सकती है, लेकिन जब इससे भेदभाव और सामाजिक असमानता जुड़ जाए, तो यह खतरनाक रूप ले सकती है।
इसके अलावा, कुछ लोग घरेलू उपायों या गर्भवती महिला के लक्षणों के आधार पर अंदाजा लगाते हैं कि बच्चा लड़का होगा या लड़की, जैसे – पेट का आकार, महिला की खट्टी या मीठी चीजें खाने की इच्छा, चेहरे पर निखार आदि। लेकिन ये सभी केवल अंधविश्वास हैं और इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। लिंग का सही और निश्चित रूप से पता केवल मेडिकल तकनीकों से ही लगाया जा सकता है, जो भारत में प्रतिबंधित हैं।
निष्कर्ष
इसलिए, यह कहना सही होगा कि वैज्ञानिक रूप से हां, गर्भ में रहते हुए बच्चे का लिंग जाना जा सकता है, लेकिन भारत में यह कानूनी और नैतिक रूप से प्रतिबंधित है। हमें एक जिम्मेदार नागरिक और मानव होने के नाते इस कानून का सम्मान करना चाहिए और बच्चे के लिंग की बजाय उसके अच्छे स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। बेटा हो या बेटी – दोनों बराबर हैं और दोनों का जीवन में अपना महत्व है। समाज तभी आगे बढ़ेगा जब हम लिंग के आधार पर भेदभाव बंद करेंगे और हर जन्म का स्वागत समान रूप से करेंगे।
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